कोटद्वार । सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व बड़ी ही धूमधाम से गोविन्द नगर स्थित गुरुद्वारे में मनाया गया। इस दौरान गुरुद्वारे में विशेष पूजा अर्चना की गई। दिन को लंगर का आयोजन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने प्रसाद चखा।साथ ही शाम को शोभायात्रा भी निकाली गई ।
पिछले लगभग दस दिनों से नगर में सुबह चार बजे प्रभात फेरी निकाली जा रही थी। गलियों मोहल्लों से होकर प्रभात फेरी गुरुद्वारे पहुंचकर समाप्त होती रही। 18 जनवरी तक लगातार प्रभात फेरी हुई। इसके बाद सुबह पांच बजे साहिब का पाठ प्रारंभ हुआ। जो कि बुधवार को समाप्त हुआ। गुरुद्वारे के मुख्य ग्रंथि लखविंदर सिंह ने बताया कि गुरु गोविंद सिंह एक आध्यात्मिक गुरु होने के साथ-साथ एक निर्भयी योद्धा, कवि और दार्शनिक भी थे।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। गुरु गोविंद सिंह के जन्म दिवस को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इन्होंने ही गुरु ग्रंथ साहिब को पूर्ण किया। बताया कि गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों का सामना किया था। सिखों के लिए 5 चीजें- बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन चीजों को ‘पांच ककार’ कहा जाता है। जिन्हें धारण करना सभी सिखों के लिए अनिवार्य होता है। गुरु गोबिंद सिंह एक लेखक भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की थी। कहा जाता है कि उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी। इसलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था।
गुरु गोबिंद सिंह को ज्ञान, सैन्य क्षमता आदि के लिए जाना जाता है। गुरु गोबिंद सिंह ने संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी सीखीं थी। साथ ही उन्होंने धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने की कला भी सीखी। गुरु गोबिंद सिंह के जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है कि जीवन में कभी भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हो। हमेशा अपने व्यक्तित्व को निखारने के लिए काम करते रहना चाहिए। आप हमेशा कुछ नया सीखते रहेंगे, तो आप में सकरात्मकता का संचार होगा। गुरुद्वारे को लाइटों व झालरों से सजाया गया। बुधवार को विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों ने लंगर का प्रसाद छककर मत्था टेका। जिसके बाद शहर में गुरु ग्रंथ साहिब व पंच प्यारों की अगुवाई में शोभा यात्रा निकाली गई जो कि मुख्य मार्गो से होते हुए पुनः गोविंद नगर स्थित गुरुद्वारे पर संपन्न हुई ।
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