कोटद्वार (गौरव गोदियाल) । दुनियाभर में कोरोना वायरस की दूसरी लहर चल रही है, जिसने हालात बेकाबू कर रखे हैं। इस बीच डॉक्टर्स और नर्स लोगों के लिए देवदूत बनकर सामने आ रहे हैं। नर्स की भूमिका एक मां से कम नहीं होती है, क्योंकि मदर्स डे के दो दिन बाद नर्स डे मनाया जाता है। नर्स के काम की तुलना किसी भी दूसरी चीज से नहीं की जा सकती। खासकर कोविड के इस दौर में उनका काम और अतुल्य हो गया है। कभी इधर दौड़ना, कभी उधर। इस मरीज की सांस फूलने लगी, उस मरीज को फलां दवा देनी है। पीपीई किट पहनी है तो पानी भी नहीं पी सकते। मां-बाप भी मरीज हैं लेकिन उन्हें कोविड न हो इसलिए उनसे दूरी बनाई है। मां का दिल नहीं मानता, वह चाहती हैं कि बेटे/बेटी से मिल लें लेकिन नर्स बेटा/बेटी क्वारंटीन है। बेटी ने अपनी ड्यूटी निभाने के लिए मम्मी-पापा से दूरी बनाई है। कोई दिन ऐसा भी गुजर जाता है कि जब दाल, चावल, सब्जी, रोटी भी नसीब में नहीं होती । इसी क्रम में हम राजकीय बेस चिकित्सालय में तैनात नर्स दीप्ति के फर्ज को करीब से महसूस करते हैं ।
स्टाफ नर्स दीप्ति बताती हैं कि चाहे यह कोविड का दौर हो या पहले का रहा हो, हम मरीज की सेवा में तत्पर रहते हैं। हम लोग इस समय घर में रहकर ही मानो घर से दूर रह रहे हैं । पिछले कुछ दिनों पूर्व मरीजों की सेवा करते हुए मेरी कोविड रिपोर्ट भी पॉजिटिव आ गई थी। होम क्वारंटीन रहकर ठीक हुई । इस समय मेडिकल वार्ड या कोविड वार्ड में प्रत्येक दिन कई लोगों की मृत्यु हो रही है जोकि अधिकतर छोटी उम्र के ही लोग हैं । रोज कोई-न-कोई खबर हमें अंदर तक हिला देती है। लेकिन सबकुछ भुलाने की कोशिश करते हुए हम फिर से अपने काम पर डट जाते हैं। हम जितने भी लोग मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं, सब मिलकर ऐसा माहौल बनाते हैं कि हंसी-खुशी सबकी सेवा करते रहें और मरीजों को मुस्कुराहट दे सकें।मैं जब ड्यूटी से घर वापस आती हूं तो पर्स, पानी की बॉटल और हाथ सैनिटाइज करती हूं। बिना कुछ छुए सीधे बाथरूम जाती हूं। उसके बाद ही कुछ नाश्ता आदि करती हूं।
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