देहरादून : सैल्फ रिस्पेक्ट, स्वमान अर्थात स्व को मान देने वाले जब अपने स्वमान कि सीट पर सैट होकर कर्म करने से महान बन जाते है। इनका हर कदम, हर चरित्र, हर पार्ट और हर सम्बन्ध महान होता है। ऐसे लोग अपनी महानता को जानते हुए अपना हर कदम उठाते है। ऐसे व्यक्तियों की महानता वाली स्मृति सदा पावरफुल रहती है। इसी प्रकार वे सदा स्वयं को समझ कर स्वतः ही चलते रहते है।
स्व स्थिति और पोजिशन की श्रेष्ठ स्थिति और स्वमान की सीट पर सैट रहते है। इसके विपरित दूसरे लोग अपने स्वमान की सीट पर सैट नही होते है बल्कि अपनी सीट को छोडकर बार-बार नीचे आ जाते है। जबकि सीट पर सैट रहने से ही हम स्वमान या सैल्फ रिस्पेक्ट में रहते है और सीट को छोड देने पर अभिमान या अहंकार में आ जाते है। इसलिए अपनी सीट पर सैट होकर अपना हर संकल्प और कर्म करना चाहिए। सीट पर सैट होकर कर्म करने से हमें महानता का वरदान मिल जाता है।
कम महान व्यक्ति अपनी महानता की स्मृति से बीच बीच में विस्मृति होते रहते है। इनके बार बार स्मृृति से उतरना और स्मृति में चढना, अपनी महानता को भूल जाने के कारण होता है। ऐसे व्यक्ति अपने ईगो, अहंकार के कारण अपनी महानता की स्मृति खो देते है और सभी बातो का कारण जानते हुए भी उसका निवारण नही कर पाते है क्योकि महानता की स्मृति खो देने के बाद इनके भीतर शाक्ति की कमी हो जाती है या दृढता का अभाव हो जाता है।
सामान्य व्यक्ति एक बार धोखा खा जाने के बाद स्वयं ही संभल जाता है। इसी प्रकार महानता की अनुभव होने के बाद हम धोखा खाने से बच जाते है क्योकि अपनी शक्ति को याद रखने के कारण हम सर्व परिस्थियों को मिटाने वाले बन जाते है। विध्न विनाशक बन जाते है।
सीट पर सैट होकर कर्म करने वाला राज ऋषि कहलाता है। राजऋषि अर्थात राज्य करने वाला और त्याग करने वाला। जितना अधिकारी उतना ही सर्व त्यागी। सर्व त्यागी अर्थात अपने संकल्प के ऊपर, अपने समय के ऊपर और अपने स्वभाव संस्कार के ऊपर सभी प्रकार का अधिकार करना होता है अर्थात हम जब चाहे, जैसा चाहे अपने स्वभाव और संस्कार में परिवर्तन ला सकते है अथवा जैसा भी समय हो हम वैसा ही अपना स्वरूप व स्थिति धारण कर सकते है।
ऐसे लोग सदा सफलता स्वरूप बनते है। इनके अन्दर परखने की शक्ति तीव्र होती है। परखने की शक्ति तीव्र होने के कारण विध्न आने के पूर्व ही विघ्नों को जान लेते है और विघ्नों के द्वारा वार करने के पूर्व ही उन्हे समाप्त कर देते है। इस कारण इनके भीतर व्यर्थ नही जमा होता है, जिसके प्रभाव से यह समर्थ बन जाते है।
ऐसे व्यक्ति दूसरों को अच्छी तरह परख लेते है और जान लेते है कि किस समय किस व्यक्ति को क्या चाहिए और उसी के अनुसार दूसरों को सदा सन्तुष्ट रखते है। अपनी परखने की शक्ति के द्वारा जब चाहते है वैसा स्वरूप धारण कर लेते है। इनके सामने प्रकृति और परिस्थिति दासी बन कर रहती है। क्योकि ये प्रकृति और परिस्थिति पर सदैव विजय प्राप्त करते है अर्थात प्रकृति और परिस्थिति के वशीभूत नही होते है।
अव्यक्त बापदादा महावक्य मुरली 23 जनवरी 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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