देहरादून : सिद्ध स्वरूप बनने का अर्थ है हमारा हर बोल और संकल्प सिद्ध हो। अर्थात सारे दिन में जो संकल्प चलता है और मुख से जो बोल निकलता है वह सिद्ध है। संकल्प है बीज, बीज जितना समर्थ होगा उतना अच्छा फल निकलेगा, तब कहेगे संकल्प सिद्ध स्वरूप है ।
जिसका संकल्प और बोल सिद्ध होता है, वह उसी आधार पर प्रसिद्ध होता है। सिद्ध संकल्प का अर्थ है कि हम जो बोले वही हो जाये और जो कहे उसे सिद्ध करने की जरूरत न हो। इसके लिए हमें अपना हर बोल और संकल्प को समर्थ बनने के लिए अटेन्शन रखना होगा।
सिद्ध संकल्प होते ही यह हमारे वाणी और कर्म में आटोमैटेकली आ जाता है। इसके बाद हमें अधिक बोलने और करने की जरूरत नही होगी। कम मेहनत अधिक सफलता मिलेगी। वाणी द्वारा सेवा करने का चान्स नही मिलेगा।
क्योकि हमारी सेवा नैनो द्वारा और मुस्कराते हुए मुख द्वारा, और चमकते हुए चेहरे द्वारा स्वतः हो जाती है। इससे हमें सतुष्टता का सर्टिफिकेट आटोमैटेकली मिल जाता है। हमारी संतुष्टता हमारे पुरूषार्थ में हाई जम्प देने वाली बन जाती है।
अव्यक्त बाप दादा महावाक्य मुरली 16 अक्टूबर 1975
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड
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