- मनोज श्रीवास्तव
देहरादून : इमोशन्स की ब्लैक मार्केटिंग है, वैलेंटाइन डे। चीजें इस्तेमाल करने के लिए होती हैं और इंसान से प्रेम किया जाता है। परन्तु ग्लोबलाइजेशन के दौर में और भौतिकवादी संस्कृति के दबाव में इंसानों का इस्तेमाल किया जा रहा है और चीजों से प्रेम किया जा रहा है।
वैलेंटाइन डे विदेशी संस्कृति के प्रचार-प्रसार का परिणाम है। ग्लोबल दुनिया में हम बहुत तेजी से दूसरे देशों का कल्चर अपनाने लगे हैं। विचार करने वाली बात है, क्या हमारे लिये विदेशी संस्कृति पर आधारित, स्थापित मूल्य को अपनाना जरूरी है ? भारतीय संस्कृति में देखा जाए तो प्रेम को बहुत ऊंचा स्थान दिया गया है। अनकंडीशनल लव, बिना शर्त प्रेम की तलाश में मनुष्य ऐसी जगह खोज कर रहा है जहाँ वह है ही नहीं। अंदर का खालीपन बाहरी चीजों से नहीं भरा जा सकता। स्प्रीचुअल वैल्यू पर ध्यान न देने के कारण हमारी आत्मा की वैल्यू का परसेटेज कम होता जा रहा है, जिसके कारण हम अंदर से खाली महसूस कर रहे हैं और इस खालीपन को दूर करने के लिए आत्मा से बाहर जाकर चीजों में आत्मा के मूल्य को खोजने का प्रयास कर रहे हैं। इस प्रयास में हमारी संस्कृति का वैल्यू सिस्टम बदलता जा रहा है।
इस वैल्यू सिस्टम के आधार पर प्यार शब्द को सुनते ही हमारे अंदर के कंप्यूटर मैमोरी की अलग-अलग फाइलें खुलने लगती हैं। इसके चलते वैलेंटाइन डे की मार्केटिंग वाली फाइल बहुत तेजी से खुलती है। इसके अंतर्गत दिल वाले कार्ड, गिफ्ट इत्यादि के माध्यम से लोग अपने प्रेम का इजहार करते हैं।
आजकल का प्यार सुबह का प्यार और शाम का अलगाव सामान्य रूप में देखा जाता है। यह केवल वैलेंटाइन डे की बात नहीं है बल्कि प्रत्येक दिन की बात है। हम वैस्टर्न कल्चर की कॉपी कर रहे हैं। इसलिये स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या हमें सच में वैलेंटाइन डे की जरूरत है ? क्या हमें एक दिन वैलेंटाइन डे सेलिब्रेट करना चाहिए अथवा प्रत्येक दिन वैलेंटाइन डे सेलिब्रेट करना चाहिए। तन से तन न मिल पाएं तो क्या मन से मन का न मिलना बड़ी बात नहीं है ? प्यार के कई लेबल होते हैं, शारीरिक लेबल का प्यार, मन के लेबल का प्यार, देश के लेबल का प्यार देश प्रेम है। किन्तु प्यार का हाईस्ट लेबल अल्टिमेट रियलिटी परमात्मा प्रेम में पाया जाता है। यहाँ पर ही हमें अनकंडीशनल लव, बिना शर्त का प्यार मिल सकता है। इसके अलावा कोई व्यक्ति हमारा एक सीमा तक ही साथ देगा, एक सीमा तक ही प्रेम करेगा। परमात्मा प्रेम में केवल प्रेम लेना होता है परंतु प्रेमी-प्रेमिका के संबंध में प्रेम लेना और देना दोनों होता है। यदि प्रेम दोगे तभी प्रेम मिलेगा। इस प्रेम में यह भी प्रश्न उठ जाता है कि मैंने इनके लिए इतना किया, इन्होंने हमारे लिए क्या किया ?
वैलेंटाइन डे का अर्थ माँ-बाप, पशु-पक्षी सहित इंसानों से प्रेम करना है, किन्तु ग्लोबलाइजेशन के दौर में वैलेंटाइन डे का नाम आते ही लविंग पार्टनल वाली फाइल खुल जाती है। इस मान्यता के कारण यंग ऐज में सुसाइड का केश बढ़ता है, इसके लिए मूवी और सीरियल बढ़ावा देते हैं। प्रेमी और प्रेमिका एक दूसरे के लिए घर छोड़ देते हैं। ऑनल किलिंग के तहत प्रेमी-प्रेमिका का मार दिया जाता है अथवा प्रेमी-प्रेमिका स्वयं मर जाते हैं। प्रश्न है प्यार का सही अर्थ क्या है? यदि हम किसी फूल से प्रेम करेंगे तब उसे तोड़ेंगे नहीं बल्कि सींचेगे, जल देंगे। लेकिन भौतिकवादी संस्कृति के दबाव में प्रेम का अर्थ यह मेरी नहीं हो सकी तो किसी की नहीं हो सकती है।
वर्तमान समय क्विक ऑफ बटन का है, अर्थात हम इंतजार करना नहीं जानते हैं। इंडस्ट्री ने सभी को सभी प्रकार की सुविधा उपलब्ध करा दी है। हमें सभी चीज पल झपकते मिल जाती है। आज के कल्चर में एक व्यक्ति अपने एक लाइफ पार्टनर से संतुष्ट न होने के कारण अनेक पार्टनर खोजने में व्यस्त है। क्योंकि हर व्यक्ति अंदर से खाली है और भरपूरता के लिए बाहरी दुनिया में भटक रहा है।
कोई व्यक्ति या वस्तु हमारे लिए अल्पकाल का साधन हो सकता है। भिखारी से प्रेम की अपेक्षा करना मूर्खता है। जिसे स्वयं प्रेम की आवश्यकता है वह प्रेम दे नहीं सकता है। परमात्मा प्रेम का सागर है। जब योग, मेडिटेशन द्वारा परामात्मा से जुड़ जाते हैं तब हमें प्रेम मिलने लगता है, और परमात्मा से मिलने वाला प्रेम जब हम दूसरों को प्रेम देना शुरू कर लेते हैं तब हमें प्रेम मांगने की जरूरत नहीं पड़ती।
विदेशी संस्कृति में यदि लाइफ पार्टनर के बीच में दिन भर में एक दिन में आई लव यू नहीं बोला जाए तो तलाक हो जाता है। इसे मजबूरी में करने वाला प्रेम कहते हैं। इसी वैल्यू के आधार पर इंडस्ट्री हमारे दिमाग में डाल देता है कि जब तक हम किसी को गिफ्ट, कार्ड या चाकलेट न दें तो तब तक हम उसे प्रेम नहीं करते हैं। यह इमोसन्स की ब्लैक मार्केटिंग है। हम अपने बिलीफ सिस्टम को चेक करें कि जीवन में हमारे लिए वैलेंटाइन डे की कितना जरूरी है ? प्रेम का अर्थ यह लगाया जाता है कि लोग हमारे उपर अटेंशन दें, और हमें एप्रीसिएट करें
लेखक : मनोज श्रीवास्तव, सहायक निदेशक सूचना एवं लोकसम्पर्क विभाग उत्तराखंड देहरादून।